• उम्र से जुड़े इंतज़ार में दो बिल

    उम्र को लेकर सियासत हमेशा सतर्क रहती है। इस घटाने-बढ़ाने के साथ-साथ वह अपने वोटों का गणित भी साधती रहती है लेकिन जब मामला सेहत और सशक्तिकरण का हो तो फैसले लटकने नहीं चाहिए

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    दुनिया ने यह जिम्मेदारी काफी हद तक युवाओं को देने में दिलचस्पी ली है लेकिन यह भी ज़रूर है कि उच्च सदन और उच्च पद पर कई देश केवल अनुभव को तरजीह देते हैं। यही ठीक भी है क्योंकि जब दुनिया के नेता किसी मसले पर विचार करें तो देश का नुमाइंदा अनुभव और परिपक्वता के साथ अपनी बात रख सके।

    उम्र को लेकर सियासत हमेशा सतर्क रहती है। इस घटाने-बढ़ाने के साथ-साथ वह अपने वोटों का गणित भी साधती रहती है लेकिन जब मामला सेहत और सशक्तिकरण का हो तो फैसले लटकने नहीं चाहिए। उम्र से जुड़े यूं तो दो विधेयकों पर फैसले लंबित हैं लेकिन एक को लंबे समय से अंतिम फैसले का इंतज़ार है। फ़िलहाल बात उस बिल की जो युवा शक्ति को कम उम्र में चुनाव लड़ने की सहूलियत देना चाहता है। इससे पहले की सरकारों ने वोट देने की उम्र को 21 से घटाकर 18 वर्ष किया था। इस बार जिस मामले से उम्र जुड़ बैठी है वह चुनाव लड़ने की है। अब सरकार लोकसभा और विधानसभा के लिए उम्मीदवार की उम्र 25 से 21 या 18 कर देने का मन बना रही है।

    सदन के एक सदस्य ने निजी हैसियत से ऐसा बिल पेश किया है जिसमें सांसद और विधायक के और युवा होने का ब्यौरा है। तर्क यह है कि जब देश की 65 फ़ीसदी आबादी 35 से कम उम्र की है तब क्यों नहीं उन्हें चुनाव लड़ने का हक भी मिलना चाहिए? दूसरा तर्क यह है कि जब 18 की उम्र में वह नेता को चुन सकता है तो ख़ुद नेता क्यों नहीं बन सकता? तीसरा तर्क है कि जब पंचायत और नगर निकायों का चुनाव 21 साल की उम्र में लड़ा जा सकता है तब सांसद और विधायक का क्यों नहीं? इन तर्कों के विश्लेषण से पहले एक तथ्य यह कि हमारी लोकसभा एक बुजुर्ग सदन है जहां फिलहाल 543 में से केवल आठ सांसद ही तीस की उम्र के हैं। साफ़ है कि इच्छाशक्ति की कमी सियासी दलों में ही है। नया कानून बन भी जाएगा लेकिन ये टिकट युवाओं को देंगे, इसमें संशय रहेगा। देखा गया है कि उम्रदराज़ नेता अपनी सीट छोड़ना नहीं चाहते। ऐसा कभी नहीं देखा गया कि किसी सांसद ने जीते जी अपनी सीट किसी युवा के लिए छोड़ी हो।

    बीते शुक्रवार राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद चौधरी जयंत सिंह ने निजी हैसियत से संविधान संशोधन के लिए एक बिल पेश किया जिसमें चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार की उम्र 25 से घटाकर 21 साल करने की बात थी। बिल के पक्ष में 'हां' की आवाज़ ज़्यादा थी इसलिए इसे स्वीकार कर लिया गया। चौधरी जयंत सिंह ने बाद में ट्वीट किया-'युवा भारत को राजनीतिक मुख्यधारा में लाने के लिए मेरी पहल। सिफ़र् मतदान नहीं, विधानपालिका में सदस्य के रूप में देश को कुशल नेतृत्व प्रदान करने का अधिकार।'

    बहरहाल यह बिल बहस की मांग करता है और अतीत में देखा यही गया है कि सरकार द्वारा पेश बिल ही कानून बनते हैं। निजी विधेयकों पर बहस तो होती है लेकिन 1970 के बाद से कोई निजी बिल अब तक क़ानून नहीं बन पाया है। इस बिल को लेकर कहा जा रहा है कि न केवल सरकार का इरादा है बल्कि कई विपक्षी दल भी इसमें सहयोग दे सकते हैं। बेशक, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 34 साल पहले वोट देने की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष की थी, तब भी कोई विरोध सामने नहीं आया था। हां, मंडल-कमंडल की आंधी में वे हार ज़रूर गए थे। देश के पास ऐसा कोई शोध भी नहीं कि उम्र घटाने से लोकतंत्र की मज़बूती बढ़ी या नहीं।

    राष्ट्रीय लोकदल के इन्हीं जयंत चौधरी (43) ने तीन साल पहले भी नई दिल्ली से अभियान छेड़ा था। तब वे अपनी पार्टी के उपाध्यक्ष थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आप को देश का सबसे बड़ा यूथ आईकान बताते हैं। उनकी खुद की पार्टी में कितने युवाओं को मौका दिया गया है। उन्होंने कहा था कि भारत के युवाओं को युवा नेता की दरकार है और अगर हमें देश की कठिन समस्याओं का हल निकालना है तो हमें युवाओं की सत्ता में भागीदारी बढ़ानी होगी।

    जनता दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे। उन्होंने भी युवा शक्तिकी ताकत पर ज़ोर देते हुए कहा था कि जवान आदमी ही चुनौतियों को स्वीकार करता है। वो जवानी किस काम की जो हर तरह के संकट के लिए तैयार न हो। मज़े की बात यह है कि तब कार्यक्रम में गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल भी थे और उन्होंने कहा था कि 'मैं मोदी के गुजरात से नहीं, सरदार पटेल और गांधी के गुजरात से आया हूं।' उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव को साझा करते हुए कहा-'विधानसभा चुनाव लड़ने की उम्र सीमा 25 साल होने से मैं चुनाव नहीं लड़ सका। चुनाव लड़ने की उम्र सीमा घटाई जानी चाहिए।' हार्दिक पटेल ने कहा था कि 1980 में बीजेपी दो सीट पर थी, आज भी दो ही सीट पर है- अमित शाह और नरेंद्र मोदी। खैर, यह पुरानी बात है। युवा हार्दिक पटेल अब भाजपा के हो गए हैं और इस बार भाजपा के टिकट से विधायक बन चुके हैं।

    12 साल पहले एक जनहित याचिका भी सर्वोच्च न्यायालय में आई थी जिसमें याचिकाकर्ता कुमार गौरव ने चुनाव लड़ने की उम्र को 25 की बजाय 21 करने की बात कही थी। तब तत्कालीन जस्टिस बालकृष्णन और जस्टिस रवीन्द्रन की पीठ ने पलटकर याचिकाकर्ता से ही सवाल किया था कि इतनी जल्दी क्या है? पहले युवाओं को कुछ अनुभव तो लेने दो! उसके बाद चुनाव लड़ें। इसके बावजूद याचिकाकर्ता हताश नहीं हुआ। उसने सवाल किया कि पेशा चुनना उसका बुनियादी हक़ है। आज के दौर में राजनीति एक पेशा है। दुनिया के कई देशों ने इस आयु सीमा को घटाया है इसलिए उसकी याचिका को स्वीकारा जाना चाहिए। पीठ ने तब स्पष्ट किया कि यह हमारे क्षेत्राधिकार से बाहर की बात है और इस बदलाव के लिए उम्र से जुड़े कई संशोधन संविधान में करने होंगे। इस पर याचिका देने वाले का कहना था कि आप सरकार को बाध्य कीजिये कि 'वह ऐसा करे!' उस वक्त मुस्कुराते हुए जजों ने कहा था कि यदि यह हमारे बस में होता तो हम सबसे पहले हमारी सेवानिवृत्ति की उम्र को 65 से अस्सी कर देते। इस मज़ेदार टिप्पणी के बाद यह याचिका ख़ारिज हो गई थी।

    दुनिया की बात करें तो अमेरिका में जनप्रतिनिधि के लिए न्यूनतम आयु 25 और सीनेटर के लिए 30 वर्ष है। कनाडा, पोलैंड में भी सीनेटर के लिए 30 साल का होना ज़रूरी है। ब्रिटेन में 18 साल के युवा संसद सदस्य बन सकते हैं। उन्होंने 2006 में इस उम्र को 21 से घटाकर 18 किया था। ऑस्ट्रेलिया ,ऑस्ट्रिया, नॉर्वे ,डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम आदि देशों के निचले सदन में कोई भी नागरिक चुना जा सकता है जिसकी उम्र 18 साल है। फ्रांस में उच्च सदन के लिए यह आयु 24 साल तय है। ग्रीस में संसद सदस्य चुने जाने के लिए भारत की तरह 25 साल का होना ज़रूरी है। ग्रीस और जर्मनी में राष्ट्रपति बनने के लिए 40 साल का होना ज़रूरी है। इटली कुछ अलग है। यहां राष्ट्रपति के लिए पचास साल की उम्र आवश्यक है और सीनेटर के लिए 40 साल निर्धारित हैं। एशियाई देशों में जापान में 25 साल है। हमारे यहां 35 साल में राष्ट्रपति, 30 में राज्यसभा सदस्य और 25 में प्रधानमंत्री, लोकसभा और विधानसभा सदस्य चुना जा सकता है जिसे अब अठारह या इक्कीस कर देने का बिल संसद में पेश हो गया है।

    कहा जा सकता है कि दुनिया ने यह जिम्मेदारी काफी हद तक युवाओं को देने में दिलचस्पी ली है लेकिन यह भी ज़रूर है कि उच्च सदन और उच्च पद पर कई देश केवल अनुभव को तरजीह देते हैं। यही ठीक भी है क्योंकि जब दुनिया के नेता किसी मसले पर विचार करें तो देश का नुमाइंदा अनुभव और परिपक्वता के साथ अपनी बात रख सके। यह और बात है कि इसके बावजूद आज की दुनिया के नेता केवल निजी हित की बात सोचते हुए ही ज़्यादा नज़र आते हैं। संसार एक परिवार है, ऐसा सोचने की भूमिका में नेता अब नहीं हैं। बहरहाल राजनीति अब भारत में भी सेवा का नहीं रोज़गार और पेशे का विकल्प बन गई है। चुनाव लड़ने में भी पैसे का वर्चस्व बढ़ गया है ऐसे में चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी पैसा चाहता है। पेशा चुनने के लिए 25 की उम्र का इंतज़ार क्यों कर हो? इसलिए 21 की उम्र विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए तय की जा सकती है।

    उम्र के नियम की अत्यधिक आवश्यकता एक और बिल से जुड़ी है जो सीधे-सीधे महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा है। हमारे यहां लड़कों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 और लड़की की 18 वर्ष है। एक साल से ज़्यादा हो गया, कैबिनेट के सुझाव के बावजूद अभी तक लड़कियों के लिए इसे 21 नहीं किया गया है। बाल विवाह और विशेष विवाह अधिनियम से जोड़कर इसे 21 किया जाना चाहिए था लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है। भारत में 48 फीसदी लड़कियों की शादी अठारह से कम में हो जाती है। नतीजतन जल्दी बच्चे और ख़राब सेहत।

    जल्दी शादी उन्हें शिक्षा और रोज़गार से भी वंचित रखती है। बाल विवाह की निरस्ती के इंतज़ार में सैकड़ों केस अदालतों में लंबित हैं और जो निरस्त नहीं करवा पाते वे पूरी ज़िन्दगी माता-पिता के फैसलों और सामाजिक कुरीतियों को भुगतते हैं। भारत की हर स्त्री के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को 21 साल किया जाना बेहद जरूरी है। 21 की उम्र में शादी नारी सशक्तिकरण की दिशा में मजबूत कदम होगा। यह संशोधन चुनाव लड़ने की उम्र तय करने से भी पहले होना चाहिए। चुनाव लड़ने के लिए 25 से 21 वर्ष करने के लिए देश भले ही बहस और फिर विचार कर सकता है लेकिन लड़कियों की शादी की उम्र को 18 से 21 साल करने में सरकार को तुरंत निर्णय करना चाहिए। काम में देर करने की आदत नेताओं की पुरानी प्रथा है।
    अहसान मारहरवी का एक शेर है-
    तमाम उम्र इसी रंज में तमाम हुई/कभी ये तुमने न पूछा तेरी ख़ुशी क्या है

    (लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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